रामराज्य कैसा था?

🤔 रामराज्य कैसा था?

   हरे कृष्ण, मेरे प्यारे पाठकों! आज का ब्लॉग पोस्ट है - रामराज्य कैसा था? 

    आप सभी ने रामराज्य के बारे में सुना होगा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रामराज्य कैसा था? कैसे थी वहाँ की जनता, कैसे थे वहाँ के नियम, कैसे थी वहाँ की सुविधाएँ? 

    यदि नहीं, तो आइए मैं आपको बताता हूँ कि कैसा था वास्तव में रामराज्य?

 

🤔 तो रामराज्य का अर्थ क्या है?

    यह एक ऐसा राज्य है जहाँ राजा रामचन्द्र के नियमों के अनुसार सभी प्रसन्न और प्रशान्त हैं। रामराज्य में कोई भी अन्याय, भ्रष्टाचार, अत्याचार, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अस्वास्थ्य, प्रदूषण, संघर्ष, समस्या नहीं होती है। 

    सभी जीव समान हैं, सभी को सम्मान मिलता है, सभी को सुरक्षा मिलती है, सभी को सुविधा मिलती है।

🤔 क्या आपको लगता है कि रामराज्य सम्भव है?

🤔 क्या हमें रामराज्य की प्रेरणा से अपने समाज को सुधारने का प्रयास करना चाहिए?

🤔 क्या हमें रामराज्य के पक्ष में वोट करना चाहिए? 

👉 मेरा उत्तर है - "हाँ"! हाँ, मुझे पता है कि मुझे कुछ पत्थर मिलेंगे, पर मुझे परवाह नहीं है। मुझे पता है कि मुझे कुछ प्रेमी मिलेंगे, पर मुझे परवाह नहीं है। मुझे पता है कि मुझे कुछ प्रतिक्रिया मिलेंगी, पर मुझे परवाह नहीं है।

    क्योंकि मुझे पता है कि रामराज्य कल्पना नहीं है, बल्कि हमारा वास्तविक इतिहास है, हमारा सपना है। 

🤔 क्या हमें रामराज्य वास्तव में लाने का प्रयास करना चाहिए? 

🤔 क्या हमें राम के प्रति पूरी तरह से अनुकूल होना पड़ेगा? 

🤔 क्या हमें सीता की तरह पति-परमेश्वर मानना पड़ेगा? 

🤔 क्या हमें हनुमान की तरह सेवा करनी पड़ेगी? क्या हमें लक्ष्मण की तरह भाई-प्रेम दिखाना पड़ेगा?

👉 इन सभी प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए आज की पोस्ट को ध्यान से पढ़ें ...   


📖 भगवान् रामचन्द्र का अयोध्या पुनरागमन


    भगवान् रामचन्द्र ने विभीषण को लंका के राक्षसों पर एक कल्प तक राज्य करने का अधिकार सौंपकर सीतादेवी को पुष्प से सज्जित विमान (पुष्पक विमान) में बैठाया और फिर वे स्वयं उसमें बैठ गये। अपने वनवास की अवधि समाप्त होने पर, हनुमान, सुग्रीव तथा अपने भाई लक्ष्मणसमेत, भगवान् अयोध्या लौट आये।

    भरत भगवान् राम की खड़ाऊँ लिये थे, सुग्रीव तथा विभीषण चँवर तथा सुन्दर पंखा लिये थे, हनुमान सफेद छाता लिये हुए थे, शत्रुघ्न धनुष तथा दो तरकस लिए थे तथा सीतादेवी तीर्थस्थानों के जल से भरा पात्र लिए थीं। अङ्गद तलवार लिए थे और ऋक्षराज जाम्बवान सुनहरी ढाल लिए थे।

 

📖 अयोध्यापति भगवान् रामचन्द्र


कैसा था रामराज्य, श्रीमद्-भागवतम् (भागवत पुराण) ९.१०.५३ (9.10.53)

अग्रहीदासनं भ्रात्रा प्रणिपत्य प्रसादितः ।

प्रजाः स्वधर्मनिरता वर्णाश्रमगुणान्विताः ।

जुगोप पितृवद् रामो मेनिरे पितरं च तम् ॥

📖 श्रीमद् भागवतम् (भागवत पुराण) ९.१०.५० (9.10.50)

    तब भरत की पूर्ण शरणागति से प्रसन्न होकर भगवान् रामचन्द्र ने राजसिंहासन स्वीकार किया। वे प्रजा की रक्षा पिता की भाँति करने लगे और प्रजा ने भी वर्ण तथा आश्रम के अनुसार अपने-अपने वृत्तिपरक कार्यों में लगकर उन्हें पितृतुल्य (पिता के समान) स्वीकार किया।

    लोगों को रामराज्य जैसी व्यवस्था प्रिय है और आज भी राजनीतिक लोग कभी कभी रामराज्य नामक दल बना लेते है, किन्तु दुर्भाग्यवश उन्हें भगवान् राम में कोई श्रद्धा नहीं है। 

कभी-कभी कहा जाता है कि लोग ईशविहीन ईश-राज्य चाहते है। किन्तु ऐसी महत्त्वाकांक्षा कभी पूरी होने वाली नहीं है। अच्छी सरकार तभी विद्यमान रह सकती है जब नागरिकों तथा सरकार के मध्य वैसा ही सम्बन्ध हो जैसा कि रामचन्द्र तथा उनके नागरिकों ने प्रस्तुत किया। 

    भगवान् रामचन्द्र ने अपने साम्राज्य पर वैसा ही शासन किया जिस तरह पिता अपनी सन्तान का पालन करता है और नागरिकों ने भी रामचन्द्र जी की अच्छी सरकार से कृतज्ञ होकर उन्हें पितृतुल्य मान लिया। 

    नागरिकों तथा सरकार के मध्य पिता-पुत्र का सा सम्बन्ध होना चाहिए। जब परिवार में पुत्र अच्छा प्रशिक्षण पाते है तो वे माता-पिता के आज्ञाकारी होते है और जब पिता योग्य होता है तो वह सन्तानों की अच्छी देखभाल करता है। 


काम और क्रोध का सर्वोत्तम उपयो , श्रील प्रभुपाद, भगवद्-गीता यथारूप 3.37

    जैसा कि "स्वधर्मनिरता वर्णाश्रम गुणान्विताः" शब्दों से सूचित होता है, लोग अच्छे नागरिक थे क्योंकि उन्होंने वर्ण तथा आश्रम व्यवस्था स्वीकार की थी जिसके अनुसर समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र नाम के चार वर्ण तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्न्यास नामक चार आश्रम होते है। यह वास्तविक मानव-सभ्यता है। 

    लोगों को विभिन्न वर्णाश्रम धर्मों के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

जैसा कि 📖 भगवद्-गीता ४.१३ (4.13) में पुष्टि की गई है — 

"चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।"

    चार वर्णों की स्थापना भिन्न गुणों एवं कर्म के अनुसार की जानी चाहिए। 

    अच्छी सरकार का पहला सिद्धान्त यह होना चाहिए कि वह इस वर्णाश्रम प्रणाली को लागू करे। 

    वर्णाश्रम का उद्देश्य लोगों को ईशभावनाभावित होने के लिए प्रेरित करना है। 

"वर्णाश्रमाचारवता पुरुषेण परः पुमान् विष्णुराराध्यते ।" 

📖 विष्णु पुराण ३.८.९ (3.8.9)

    समूची वर्णाश्रम प्रणाली लोगों को वैष्णव बनाने में समर्थ होने के लिए है। 

"विष्णुरस्य देवता।" 

    जब लोग विष्णु को भगवान् मानकर पूजते है तो वे वैष्णव बनते है। 

    अतएव लोगों को उसी तरह से वर्णाश्रम प्रणाली के माध्यम से वैष्णव बनने के लिए शिक्षा दी जानी चाहिए जिस तरह रामचन्द्रजी के राज्यकाल में प्रत्येक मनुष्य को वर्णाश्रम प्रणाली का पालन करने के लिए शिक्षित किया जाता था।

मात्र कानूनों और अध्यादेशों के बल पर नागरिकों को आज्ञाकारी और कानून पालक नहीं बनाया जा सकता। यह असम्भव है। 

    विश्वभर में न जाने कितने राज्य, विधान सभाएँ तथा संसदें है, फिर भी लोग चोर तथा उचक्के है। 

    अतएव अच्छी नागरिकता लादी नहीं जा सकती अपितु नागरिकों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। 

    जिस तरह केमिकल इंजीनियर, वकील या अन्य ज्ञान के विभागों में विशेषज्ञ बनने के लिए छात्रों के प्रशिक्षणार्थ स्कूल तथा कॉलेज होते है उसी प्रकार विद्यार्थियों को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्न्यासी बनने की शिक्षा देने के लिए स्कूल तथा कॉलेज होने चाहिए। इससे अच्छी नागरिकता की प्रारम्भिक शर्त पूरी होगी (वर्णाश्रम गुणान्विताः)। 

    सामान्य रूप से यदि राजा या राष्ट्रपति राजर्षि होता है तो प्रजा तथा मुख्य कार्यकारी के मध्य का सम्बन्ध स्पष्ट हो जाएगा और राज्य में किसी बिगाड़ की सम्भावना नहीं रहेगी क्योंकि चोर-उचक्कों की संख्या घट जाएगी। 

    किन्तु कलियुग में वर्णाश्रम प्रणाली की उपेक्षा के कारण लोग सामान्यतः चोर और उचक्के हो जाते है। प्रजातान्त्रिक प्रणाली में ऐसे चोर तथा उचक्के अन्य चोर-उचक्कों से पैसा इकट्ठा करते है जिससे हर सरकार में अव्यवस्था रहती है और कोई भी सुखी नहीं रहता। 

    किन्तु भगवान् रामचन्द्र के राज्य में अच्छी सरकार का उदाहरण मिलता है। यदि लोग इस उदाहरण का अनुसरण करें तो सारे विश्व में अच्छी सरकार बन जाएगी।


📖 रामराज्य का वर्णन (अयोध्यापति भगवान् रामचन्द्र का सुशासन)


भगवान् राम ने कभी कायरता नहीं दिखाई, श्रील प्रभुपाद, भगवद्-गीता यथारूप 1.36

त्रेतायां वर्तमानायां कालः कृतसमोऽभवत् ।

रामे राजनि धर्मज्ञे सर्वभूतसुखावहे ॥

📖 श्रीमद् भागवतम् (भागवत पुराण) ९.१०.५१ (9.10.51)

    भगवान् रामचन्द्र त्रेतायुग में राजा बने थे, किन्तु उनकी सरकार अच्छी होने से वह युग सत्ययुग जैसा था। प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक एवं पूर्ण सुखी था।

    चारों युगों में से कलियुग सबसे निकृष्ट है, किन्तु यदि वर्णाश्रम धर्म की विधि लागू कर दी जाए तो इस कलियुग में भी सत्ययुग जैसी परिस्थिति लाई जा सकती है। हरे कृष्ण आन्दोलन या कृष्णभावनामृत आन्दोलन इसी प्रयोजन के निमित्त है —

कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुणः ।

कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसअङ्गः परं व्रजेत् ॥

    “हे राजन्! यद्यपि कलियुग दोषों से पूर्ण है फिर भी इस युग में एक उत्तम गुण यह है कि केवल हरे कृष्ण महामन्त्र का कीर्तन करके मनुष्य भवबन्धन से छूट सकता है और दिव्य धाम को जा सकता है।”  

📖 श्रीमद् भागवतम् (भागवत पुराण) १२.३.५१ (12.3.51)

दि लोग ‘हरे कृष्ण हरे राम’ कीर्तन के इस आन्दोलन को स्वीकार कर लें तो वे अवश्य ही कलियुग के कल्मष से मुक्त हो जाएंगे और इस युग के लोग सत्ययुग जैसे ही सुखी हो सकेंगे। 

    कोई भी व्यक्ति कहीं भी रहकर इस हरे कृष्ण आन्दोलन को ग्रहण कर सकता है; उसे केवल हरे कृष्ण महामन्त्र का कीर्तन करना, विधि-विधानों को मानना तथा पापी जीवन के कल्मष से मुक्त होना होगा। 

यदि कोई पापी जीवन को तुरन्त नहीं छोड़ सकता किन्तु यदि वह भक्ति तथा श्रद्धापूर्वक हरे कृष्ण महामन्त्र का कीर्तन करता है तो वह अवश्य ही सारे पापमय कर्मों से छूट जाएगा और उसका जीवन सफल हो जाएगा। 

"परं विजयते श्रीकृष्णसङ्कीर्तनम् ।" 

📖 श्री शिक्षाष्टकम्, श्लोक १ (1) से उद्धृत

    यह भगवान् रामचन्द्र का आशीष है कि वे इस कलियुग में गौरसुन्दर (श्रीचैतन्य महाप्रभु) रूप में प्रकट हुए है।


वनानि नद्यो गिरयो वर्षाणि द्वीपसिन्धवः ।

सर्वे कामदुघा आसन् प्रजानां भरतर्षभ ॥

📖 श्रीमद् भागवतम् (भागवत पुराण) ९.१०.५२ (9.10.52)

    हे भरतश्रेष्ठ महाराज परीक्षत्, भगवान् रामचन्द्र के राज में सारे वन, नदियाँ, पर्वत, राज्य, सातों द्वीप तथा सातों समुद्र सारे जीवों को जीवन की आवश्यक वस्तुएँ प्रदान करने के लिए अनुकूल थे।


नाधिव्याधिजराग्लानिदुःखशोकभयक्लमाः । 

मृत्युश्चानिच्छतां नासीद्रामे राजन्यधोक्षजे ॥ 

📖  श्रीमद् भागवतम् (भागवत पुराण) ९.१०.५3 (9.10.53)

जब भगवान् रामचन्द्र इस जगत् के राजा थे तो सारे शारीरिक तथा मानसिक कष्ट, रोग, बुढ़ापा, विछोह, पश्चाताप, दुःख, डर तथा थकावट का नामोनिशान न था। यहाँ तक कि न चाहने वालों के लिए मृत्यु भी नहीं थी। 

    इतनी सारी सुविधाएँ इसलिए विद्यमान थीं क्योंकि भगवान् रामचन्द्र सम्पूर्ण जगत् के राजा थे। 

    ऐसी ही परिस्थिति इस कलियुग में भी तुरन्त लागू की जा सकती है, भले ही यह युग समस्त युगों में निकृष्ट क्यों न हो। कहा गया है कि — 

"कलिकाले नामरूपे कृष्ण अवतार"  

📖  श्रीचैतन्य-चरितामृत, आदि लीला १७.२२ (17.22)

        कृष्ण इस कलियुग में केवल अपने पवित्र नाम — "हरे कृष्ण हरे राम" के रूप में अवतरित होते हैं। 

        यदि हम अपराधरहित होकर कीर्तन करें तो इस युग में राम तथा कृष्ण अब भी उपस्थित है। 

रामराज्य अत्यधिक लोकप्रिय एवं लाभदायक था और इस कलियुग में भी इस हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रसार से वैसी ही परिस्थिति तुरन्त लाई जा सकती है।

 

विश्व इतिहास का बेजोड़ सबक, श्रील प्रभुपाद, भगवद्-गीता यथारूप 1.36

एकपत्नीव्रतधरो राजर्षिचरितः शुचिः ।

स्वधर्मं गृहमेधीयं शिक्षयन् स्वयमाचरत् ॥ 

📖 श्रीमद् भागवतम् (भागवत पुराण) ९.१०.५४ (9.10.54)

    भगवान् रामचन्द्र ने एक पत्नी रखने का तथा किसी अन्य स्त्री से सम्बन्ध न रखने का व्रत ले रखा था। वे एक साधु राजा थे और उनका चरित्र उत्तम था; क्रोध उन्हें छू तक नहीं गया था। उन्होंने हर एक को, विशेष रूप से गृहस्थों को वर्णाश्रम धर्म के रूप में सदाचरण का पाठ पढ़ाया। इस तरह उन्होंने अपने निजी कार्यकलापों से सामान्य जनता को शिक्षा दी।

    श्री रामचन्द्रजी ने एक-पत्नीव्रत का ज्वलन्त उदाहरण प्रस्तुत किया। लोगों को एक से अधिक पत्नी नहीं बनानी चाहिए। 

    उन दिनों लोग एक से अधिक पत्नी से विवाह करते थे। यहाँ तक कि श्री रामचन्द्रजी के पिता के भी एक से अधिक पत्नियाँ थीं, किन्तु भगवान् रामचन्द्र ने आदर्श राजा के रूप में केवल एक पत्नी — सीतादेवी को स्वीकार किया। 

    जब रावण तथा अन्य राक्षसों के द्वारा सीताजी का अपहरण हो गया था तो भगवान् रामचन्द्र चाहते तो हजारों सीताओं से विवाह कर सकते थे, किन्तु हमें यह शिक्षा देने के लिए कि वे अपनी पत्नी के प्रति कितने निष्ठावान् थे उन्होंने रावण से युद्ध किया और अन्त में उसे मार डाला। उन्होंने रावण को दण्ड दिया और अपनी पत्नी की रक्षा लोगों को यह शिक्षा देने के लिए की कि वे एक-पत्नीव्रत बनें। भगवान् रामचन्द्रजी ने केवल एक पत्नी स्वीकार की और आदर्श चरित्र प्रकट किया। इस तरह उन्होंने गृहस्थों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया। 


गृहस्थों को चाहिए कि भगवान् रामचन्द्र के आदर्श के अनुसार जीवन बितायें जिन्होंने यह दिखलाया कि किस तरह पूर्ण व्यक्ति बना जाए। 

 

गृहस्थ होकर या पत्नी तथा बच्चों के साथ रहने की कभी भर्त्सना (निन्दा) नहीं की जाती यदि वर्णाश्रम धर्म के सिद्धान्तों के अनुसार जीवन व्यतीत किया जाए। जो लोग इन सिद्धान्तों के अनुसार जीवन बिताते है, वे चाहे गृहस्थ हों या ब्रह्मचारी अथवा वानप्रस्थ, सभी समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।



प्रेम्णानुवृत्त्या शीलेन प्रश्रयावनता सती ।

भिया ह्रिया च भावज्ञा भर्तुः सीताहरन्मननः ॥ 

📖 श्रीमद् भागवतम् (भागवत पुराण) ९.१०.५५ (9.10.55)

सीतादेवी अत्यन्त विनीत, आज्ञाकारिणी, लज्जालु तथा सती थीं और सदा अपने पति के भाव को समझने वाली थीं। इस प्रकार अपने चरित्र एवं प्रेम तथा सेवा से वे भगवान् के मन को पूरी तरह मोह सकीं।

जिस तरह भगवान् राम आदर्श पति है (एकपत्नीव्रत) उसी तरह माता सीता आदर्श पत्नी है। ऐसे संयोग से पारिवारिक जीवन अत्यन्त सुखी बन जाता है। 

"यद्-यद्-आचरति श्रेष्ठस्तत्-तदेवेतरो जनः" 

📖  भगवद्-गीता यथारूप ३.२१ (3.21) 

महापुरुष जो भी उदाहरण प्रस्तुत करते है, सामान्य लोग उसी का अनुसरण करते है। 

यदि राजा, नेता तथा ब्राह्मण शिक्षक, वैदिक साहित्य से प्राप्त उदाहरण प्रस्तुत करें तो सारा जगत् स्वर्ग बन जाए। निस्सन्देह, इस जगत् से नारकीय दशाओं का नामोनिशान मिट जाए।


🙏 जय श्रीराम
🙌🏻 श्रील प्रभुपाद की जय
🙏🏻 हरे कृष्ण (Hare Kṛṣṇa)

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