अर्ध कुक्कुटी न्यायः । Half Hen Logic । आधी मुर्गी का तर्क || श्रील प्रभुपाद की कहानियाँ - 2

अर्ध कुक्कुटी न्यायः

Half Hen Logic

आधी मुर्गी का तर्क


हरे कृष्ण, मेरे प्यारे पाठकों! आज मैं आपको श्रील प्रभुपाद की शिक्षाओं में से एक बहुत ही अच्छी शिक्षाप्रद कहानी सुनाने जा रहा हूँ। यह कहानी है "अर्ध कुक्कुटी न्यायः" Half Hen Logic की। यह कहानी हमें बताती है कि हमें गीता का 
ध्ययन कैसे नहीं करना चाहिए

अर्ध कुक्कुटी न्यायः । Half Hen Logic । आधी मुर्गी का तर्क  ||  श्रील प्रभुपाद की कहानियाँ, अधोक्षज प्रौद्योगिकी

कथा

एक बार की बात है, एक गाँव में एक व्यक्ति रहता था। उसके पास एक कुक्कुटी (मुर्गी) थी, जो प्रतिदिन एक अण्डा देती थी।

एक दिन मुर्गी का मालिक सोचता है कि यह मुर्गी बहुत अच्छी है, यह प्रतिदिन अण्डा देती है। लेकिन इसकी चोंच बहुत खर्चीली है क्योंकि यह खाने का काम करती है।

इसलिए मैं इसकी चोंच को काट देता हूँ और बाकी का हिस्सा रहने देता हूँ जिससे मुझे मुर्गी को बिना कुछ खिलाए ही अण्डा मिल जाएगा।

लेकिन ऐसा करने पर न तो मुर्गी जीवित बची न उस मूर्ख को प्रतिदिन अण्डा मिल पाया।

शिक्षा

श्रील प्रभुपाद इस तर्क की माध्यम से हमें समझाते हैं कि
सभी धूर्त व्यक्ति भगवद्-गीता "अर्धकुक्कुटी न्यायः" के अनुसार पढ़ते हैं - गीता का यह भाग ठीक नहीं है, यह भाग अच्छा है।

यदि कोई भगवद्-गीता का अध्ययन अपनी इच्छा के अनुसार करता है - इस भाग को छोड़ दो, इस भाग को ले लो। तो यह भगवद्-गीता का अध्ययन नहीं है। यह तो कुछ और ही है। 

गीता किसी मामूली सांसारिक विद्यार्थी के लिए कोई काल्पनिक भाष्य नहीं, अपितु ज्ञान का मानक ग्रन्थ है, जो अनन्त काल से चला आ रहा है।

संसारी तार्किकजन अपनी-अपनी विधि से गीता के विषय में चिन्तन कर सकते हैं, किन्तु यह यथारूप भगवद्-गीता नहीं है। अतः भगवद्-गीता को गुरु-परम्परा से यथारूप में ग्रहण करना चाहिए।

विभिन्न संसारी विद्वानों ने गीता की असंख्य टीकाएँ की हैं, किन्तु वे प्रायः सभी श्रीकृष्ण को स्वीकार नहीं करते, यद्यपि वे कृष्ण के नाम पर अच्छा व्यापार चलाते हैं। यह आसुरी प्रवृत्ति है, क्योंकि असुरगण ईश्वर में विश्वास नहीं करते, वे केवल परमेश्वर के गुणों का लाभ उठाते हैं।

इस परम ज्ञानग्रन्थ के अनेक संस्करण उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ भक्तों की टीकाएँ हैं और कुछ असुरों की।

जो टीकाएँ भक्तों द्वारा की गई हैं वे वास्तविक हैं, किन्तु जो असुरों द्वारा की गई हैं वे व्यर्थ हैं।

अर्जुन श्रीकृष्ण को भगवान् के रूप में मानता है, अतः जो गीता भाष्य अर्जुन के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए किया गया है वह इस परमविद्या के पक्ष में वास्तविक सेवा है।

किन्तु असुर भगवान् कृष्ण को उस रूप में नहीं मानते। वे कृष्ण के विषय में तरह-तरह की मनगढंत बातें करते हैं और वे कृष्ण के उपदेश-मार्ग से सामान्य जनता को पथभ्रष्ट करते रहते हैं। ऐसे कुमार्गों से बचने के लिए यह एक चेतावनी है।

सामान्यतः तथाकथित विद्वान्, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक तथा स्वामी कृष्ण के सम्यक् ज्ञान के बिना भगवद्-गीता पर भाष्य लिखते समय या तो कृष्ण को उसमें से निकाल फेंकना चाहते हैं या उनको मार डालना चाहते हैं। 

भगवद्-गीता का ऐसा अप्रामाणिक भाष्य मायावादी भाष्य कहलाता है और श्री चैतन्य महाप्रभु हमें ऐसे अप्रामाणिक लोगों से सावधान कर गए हैं। 

वे कहते हैं कि जो भी व्यक्ति भगवद्-गीता को मायावादी दृष्टि से समझने का प्रयास करता है वह बहुत बड़ी भूल करेगा। 

ऐसी भूल का दुष्परिणाम यह होगा कि भगवद्-गीता के दिग्भ्रमित जिज्ञासु आध्यात्मिक मार्गदर्शन के मार्ग में मोहग्रस्त हो जायेंगे और वे भगवद्धाम वापस नहीं जा सकेंगे। 

मनुष्य को चाहिए कि अर्जुन की परम्परा का अनुसरण करे और श्रीमद्-भगवद्-गीता के इस परमविज्ञान से लाभान्वित हो।

भगवद्-गीता को बिना किसी प्रकार की टीका टिप्पणी, बिना घटाए-बढाए तथा विषयवस्तु में बिना किसी मनोकल्पना के स्वीकार करना चाहिए।

हमें भगवद्-गीता को अर्जुन की तरह स्वीकार करना चहिए।

अर्जुन श्रीकृष्ण से कहते हैं,

सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव।

हे केशव! आपने जो कुछ भी कहा है, इसे मैं सम्पूर्ण रूप से सत्य मानता हूँ।

📖 भगवद्-गीता 10.14

भगवद्-गीता वेदों के ही समान है क्योंकि इसे श्रीभगवान् ने कहा था, अतः यह ज्ञान अपौरुषेय है।

चूँकि वैदिक आदेशों को यथारूप में बिना किसी मानवीय विवेचना के स्वीकार किया जाता है फलतः गीता को भी किसी सांसारिक विवेचना के बिना स्वीकार किया जाना चाहिए।

वैदिक ज्ञान पूर्ण है, क्योंकि यह सभी संशयों एवं त्रुटियों से परे है, और भगवद्-गीता समस्त वैदिक ज्ञान का सार है।


📖 लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद

🙌🏻 श्रील प्रभुपाद की जय

🙏🏻 हरे कृष्ण (Hare Kṛṣṇa)

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टिप्पणियाँ

  1. It seems to me logical We should understand the meaning of Bhagavad Gita deeply.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Yes, you are right.

      Bhagavad-gītā is the widely read theistic science summarized in the Gītā-māhātmya (Glorification of the Gītā).

      There it says that one should read Bhagavad-gītā very scrutinizingly with the help of a person who is a devotee of Śrī Kṛṣṇa and try to understand it without personally motivated interpretations.

      The example of clear understanding is there in the Bhagavad-gītā itself, in the way the teaching is understood by Arjuna, who heard the Gītā directly from the Lord.

      If someone is fortunate enough to understand the Bhagavad-gītā in that line of disciplic succession, without motivated interpretation, then he surpasses all studies of Vedic wisdom, and all scriptures of the world.

      One will find in the Bhagavad-gītā all that is contained in other scriptures, but the reader will also find things which are not to be found elsewhere. That is the specific standard of the Gītā.

      It is the perfect theistic science because it is directly spoken by the Supreme Personality of Godhead, Lord Śrī Kṛṣṇa.

      📖 Śrīla Prabhupāda, Bhagavad-gītā As It Is 1.1, Purport

      हटाएं
  2. भगवद्-गीता एक बहुपठित आस्तिक विज्ञान है जो गीता-माहात्म्य में सार रूप में दिया हुआ है।

    इसमें यह उल्लेख है कि मनुष्य को चाहिए कि वह श्रीकृष्ण के भक्त की सहायता से संवीक्षण (अत्यतन्त ध्यानपूर्वक) करते हुए भगवद्-गीता का अध्ययन करे और स्वार्थप्रेरित व्याख्याओं के बिना उसे समझने का प्रयास करे।

    अर्जुन ने जिस प्रकार से साक्षात् भगवान् कृष्ण से गीता सुनी और उसका उपदेश ग्रहण किया, इस प्रकार की स्पष्ट अनुभूति का उदाहरण भगवद्-गीता में ही है।

    यदि उसी गुरु-परम्परा से, निजी स्वार्थ से प्रेरित हुए बिना, किसी को भगवद्-गीता समझने का सौभाग्य प्राप्त हो तो वह समस्त वैदिक ज्ञान तथा विश्व के समस्त शास्त्रों के अध्ययन को पीछे छोड़ देता है।

    पाठक को भगवद्-गीता में न केवल अन्य शास्त्रों की सारी बातें मिलेंगी अपितु ऐसी बातें भी मिलेंगी जो अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं हैं। यही गीता का विशिष्ट मानदण्ड है।

    स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा साक्षात् उच्चरित होने के कारण यह पूर्ण आस्तिक विज्ञान है।

    📖 श्रील प्रभुपाद, भगवद्-गीता यथारूप, 1.1 तात्पर्य

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