हे भगवान्! हमें रोजी-रोटी दो (O God, Give us our daily bread) || श्रील प्रभुपाद की कहानियाँ - 3

 हे भगवान्! हमें रोजी-रोटी दो।

हरे कृष्ण, मेरे प्यारे पाठकों! आज मैं आपको श्रील प्रभुपाद की शिक्षाओं में से एक बहुत ही रोचक शिक्षाप्रद कहानी सुनाने जा रहा हूँ।

यह कहानी है "हे भगवान्! हमें रोजी-रोटी दो" (O God, Give us our daily bread) यह कहानी हमें बताती है कि कैसे दुष्टों द्वारा भोले-भाले लोगों को नास्तिक बनाया जाता है और भगवान् ही हम सबके पालनहार है

हे भगवान्, हमें रोजी-रोटी दो (O God, Give us our daily bread) - श्रील प्रभुपाद की कहानियाँ, अधोक्षज प्रौद्योगिकी


कहानी

एक बार पाश्चात्य जगत् में एक नास्तिक सरकार ने अपने अबोध (भोले-भाले) नागरिकों को नास्तिक विचारों को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। 

सरकार ने अपने प्रचारकर्ताओं को गाँवों में भेजकर लोगों का विश्वास बदलने भेजा। 

एक गाँव में जाकर सरकारी प्रचारकर्ताओं अबोध गाँव वालों से पूछा, “तुम गिरजाघर क्यों जाते हो?” तुम भगवान् से किस वस्तु के लिए प्रार्थना करते हो? 

तो गाँव वालों का सीधा उत्तर था, “भगवान् हमें भोजन देते हैं।”

तब वे नास्तिक उन गाँव वालों को गिरजाघर ले गए और उनसे कहा कि भगवान् से भोजन लिए प्रार्थना करो। 

सीधे-सादे गाँव वालों के ने प्रार्थना करनी शुरू कर दी। 

प्रार्थना के बाद उन अधिकारियों ने उनसे पूछा कि क्या तुम्हें भोजन मिला? 

भ्रमित लोगों ने अपने सिर हिला कर मना कर दिया। 

उसके बाद जब उन नास्तिकों ने गाँव वालों से कहा कि तुम हमसे भोजन के लिए प्रार्थना करो, तब उन्होंने वैसा ही किया। 

अपने को विजयी पाकर वे नास्तिक तुरन्त ही गाड़ियों में भरकर रोटियाँ ले आए और रोटियों को उन लोगों में बाँट दिया। 

गाँव वाले प्रसन्न हो उठे और उन्होंने सोचा कि ये सरकारी प्रतिनिधि भगवान् की अपेक्षा अधिक संवेदनशील तथा सहायक है। 

इस प्रकार नास्तिक लोग अपनी योजना में सफल हो गए।

शिक्षा

श्रील प्रभुपाद हमें समझाते हैं कि 

यदि धरती अन्न उत्पन्न न करे तो ये नास्तिक लोग भौतिक विज्ञान की उन्नति के बावजूद कभी रोटी या अन्य भोजन तैयार नहीं कर सकते और न ही किसी फैक्ट्री में अन्न उत्पादन हो सकता है।

भगवान् द्वारा प्रदत्त गेहूँ को उन नास्तिकों ने रोटी का रूप दिया है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि यह उनकी सम्पत्ति बन गई। रोटी तो भगवान् से ही आती है, नास्तिकों से नहीं। 

दि ये गाँव वाले शास्त्रों को जानते तो वे नास्तिक लोग कभी भी अपनी दुष्ट योजना में सफल न हुए होते। सीधे-सादे गाँव वाले अशिक्षित थे। अतः उन्हें इसका कोई अनुमान न था कि एकमात्र भगवान् ही उन्हें भोजन दे सकते। 

यदि एक भी भगवद्-भक्त वहाँ उपस्थित होता तो उन गाँव वालों की भक्ति के साथ इस तरह का खिलवाड़ न होता।


🙌🏻 श्रील प्रभुपाद की जय
🙏🏻 हरे कृष्ण (Hare Kṛṣṇa)

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