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हे भगवान्! हमें रोजी-रोटी दो (O God, Give us our daily bread) || श्रील प्रभुपाद की कहानियाँ - 3

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  हे भगवान्! हमें रोजी-रोटी दो। हरे कृष्ण, मेरे प्यारे पाठकों! आज मैं आपको श्रील प्रभुपाद की शिक्षाओं में से एक बहुत ही रोचक शिक्षाप्रद कहानी सुनाने जा रहा हूँ। यह कहानी है "हे भगवान्! हमें रोजी-रोटी दो" (O God, Give us our daily bread) यह कहानी हमें बताती है कि कैसे दुष्टों द्वारा भोले-भाले लोगों को नास्तिक बनाया जाता है  और  भगवान् ही हम सबके पालनहार है । कहानी एक बार पाश्चात्य जगत् में एक नास्तिक सरकार ने अपने अबोध ( भोले-भाले)  नागरिकों को नास्तिक विचारों को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया।  सरकार ने अपने प्रचारकर्ताओं को गाँवों में भेजकर लोगों का विश्वास बदलने भेजा।  एक गाँव में जाकर सरकारी प्रचारकर्ताओं अबोध गाँव वालों से पूछा, “तुम गिरजाघर क्यों जाते हो?” तुम भगवान् से किस वस्तु के लिए प्रार्थना करते हो?  तो गाँव वालों का सीधा उत्तर था, “भगवान् हमें भोजन देते हैं।” तब वे नास्तिक उन गाँव वालों को गिरजाघर ले गए और उनसे कहा कि  भगवान् से भोजन लिए प्रार्थना करो।  सीधे-सादे गाँव वालों के ने प्रार्थना करनी शुरू कर दी।  प्रार्थना के बाद उन अधिकारियों ने उनसे पूछा कि क्या तुम

'आचार्य' शब्द का अर्थ क्या होता है?

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'आचार्य' शब्द का अर्थ  क्या  होता है?   हरे कृष्ण, मेरे प्यारे पाठकों!  'आचार्य' शब्द का क्या अर्थ होता है?  यह प्रश्न आपके मन में भी कभी अवश्य आया होगा।   आपने श्रीशङ्कराचार्य (अद्वैतवाद दर्शन के संस्थापक), श्रीरामानुजाचार्य (विशिष्टाद्वैतवाद दर्शन के संस्थापक, श्री सम्प्रदाय), श्रीमध्वाचार्य (शुद्ध द्वैतवाद दर्शन के संस्थापक, ब्रह्म सम्प्रदाय), श्रीनिम्बार्काचार्य (द्वैताद्वैतवाद दर्शन के संस्थापक, कुमार सम्प्रदाय) आदि महान् गुरुजनों के नाम में 'आचार्य' शब्द लिखा हुआ देखा होगा। तो आइए अब जानते हैं इस प्रसिद्ध शब्द का सही अर्थ क्या होता है? ' आचार्य अर्थात् आदर्श शिक्षक   चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि शिक्षा देने के पूर्व शिक्षक को ठीक-ठीक आचरण करना चाहिए। जो इस प्रकार शिक्षा देता है वह आचार्य या आदर्श शिक्षक कहलाता है। आम लोगों को हमेशा ऐसे नेता की आवश्यकता होती है, जो व्यावहारिक आचरण द्वारा जनता को शिक्षा दे सके। यदि नेता स्वयं धूम्रपान करता है तो वह जनता को धूम्रपान बन्द करने की शिक्षा नहीं दे सकता। इसलिए शिक्षक को चाहिए कि आम लोगों को शिक्षा देने के लिए

हरे कृष्णा या हरे कृष्ण - कौनसा सही है?

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हरे कृष्णा या हरे कृष्ण  कौनसा सही है? हरे कृष्ण, मेरे प्यारे पाठकों! आपने कभी यह सोचा है कि हरे कृष्णा और हरे कृष्ण में क्या अन्तर है? क्या आपको पता है कि इन दोनों में से कौनसा सही है? यदि नहीं, तो आज मैं आपको इसके बारे में बताने जा रहा हूँ। हरे कृष्ण महामन्त्र का पूरा रूप है - हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हे हरा (श्रीमती राधारानी)! हे कृष्ण (सर्वाकर्षक), हे राम (अनन्त आनन्द के स्रोत)! कृपया मुझे आपकी प्रेमाभक्ति में नियुक्त करें। लेकिन कुछ लोग "हरे कृष्ण" के स्थान पर "हरे कृष्णा" प्रयोग करते हैं, जो सही नहीं है। ऐसे ही "हरे राम" के स्थान पर "हरे रामा" प्रयोग करते हैं । हमें यहाँ ध्यान देना चाहिए कि कृष्ण और कृष्णा इन दोनों का अर्थ एक नहीं है। कृष्ण - भगवान् श्रीकृष्ण कृष्णा - द्रौपदी ("कृष्णासुतानां स्वपतां शिरांसि" 📖 श्रीमद्-भागवतम् 1.7.14) अतः हरे कृष्ण, हरे राम लिखना, बोलना ही सही है और हरे कृष्णा, हरे रामा लिखना, बोलना सही नहीं है। आशा है कि अब से आप भी  हरे कृष्ण, हरे राम ही लिखें

अर्ध कुक्कुटी न्यायः । Half Hen Logic । आधी मुर्गी का तर्क || श्रील प्रभुपाद की कहानियाँ - 2

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अर्ध कुक्कुटी न्यायः Half Hen Logic आधी मुर्गी का तर्क हरे कृष्ण, मेरे प्यारे पाठकों! आज मैं आपको श्रील प्रभुपाद की शिक्षाओं में से एक बहुत ही अच्छी शिक्षाप्रद कहानी सुनाने जा रहा हूँ। यह कहानी है "अर्ध कुक्कुटी न्यायः" Half Hen Logic की। यह कहानी हमें बताती है कि हमें गीता का  अ ध्ययन कैसे नहीं करना चाहिए । कथा एक बार की बात है, एक गाँव में एक व्यक्ति रहता था। उसके पास एक कुक्कुटी (मुर्गी) थी, जो प्रतिदिन एक अण्डा देती थी। एक दिन मुर्गी का मालिक सोचता है कि यह मुर्गी बहुत अच्छी है, यह प्रतिदिन अण्डा देती है। लेकिन इसकी चोंच बहुत खर्चीली है क्योंकि यह खाने का काम करती है। इसलिए मैं इसकी चोंच को काट देता हूँ और बाकी का हिस्सा रहने देता हूँ जिससे मुझे मुर्गी को बिना कुछ खिलाए ही अण्डा मिल जाएगा। लेकिन ऐसा करने पर न तो मुर्गी जीवित बची न उस मूर्ख को प्रतिदिन अण्डा मिल पाया। शिक्षा श्रील प्रभुपाद इस तर्क की माध्यम से हमें समझाते हैं कि सभी धूर्त व्यक्ति भगवद्-गीता "अर्धकुक्कुटी न्यायः" के अनुसार पढ़ते हैं - गीता का यह भाग ठीक नहीं है, यह भाग अच्छा है। यदि कोई भगवद्-ग

“कीलोत्पाटीव वानरः” - कील उखाड़ने वाले बन्दर की कहानी || श्रील प्रभुपाद की कहानियाँ - 1

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     नमस्कार मित्रों, आज का ब्लॉग पोस्ट है - “कीलोत्पाटीव वानरः” - कील उखाड़ने वाले बन्दर की कहानी । श्रील प्रभुपाद बन्दर की कहानी के माध्यम से हमें एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा देते हैं - "यदि कोई ऐसा कार्य करना चाहता है जिसमें वह करने में असमर्थ है, तो वह ऐसे ही मर जाता है जैसे किल उखाड़ने वाला मूर्ख बन्दर।" कथा किसी नगर के निकट एक बनिये ने एक मन्दिर बनवाना प्रारम्भ किया। वहाँ पर काम करने वाले कारीगर दोहपर में खाना खाने के लिए चले जाया करते थे। एक दिन वहाँ बन्दरों का एक झुण्ड इधर-उधर घूमता हुआ आया। उन कारीगरों में से एक ने अर्जुनवृक्ष का एक लट्ठा चीर कर उसके बीच एक कील (गोटी) फंसा दी थी। वहाँ पहुँच कर बन्दरों ने पेड़ों, मकानों और लट्टे पर उछल-कूद करनी शुरू की। उन बन्दरों में से एक बन्दर नहीं जानता था कि उसकी मौत निकट है। उसने दोनों हाथों से लट्टे के बीच में फंसी कील को उखाड़ना शुरू किया।      जैसे ही उसने कील निकाली वैसे ही लटे की चीर में उसका अण्डकोष फंस गया। अण्डकोष फंसने से वह बन्दर मर गया।  इसलिए व्यर्थ का कार्य करने वाले की दशा कील उखाड़ने वाले बन्दर की तरह होती है। शिक्षा अव्याप